इस लेख में:
बच्चों में शुरुआती दाँत कब आती हैं?
बच्चों के दाँत किस महीने में आने शुरु हो जाते हैं?
बच्चे के कौन से दाँत पहले आते हैं?
जिन बच्चों के देर से दाँत निकलते है।
बच्चे को देर से दाँत आने के क्या कारण हैं?
शिशुओं में दाँत निकलने कौन से लक्षण और समस्या पाये जाते हैं?
बच्चों को दाँत निकलने के दौरान होने वाली तकलीफें कौन सी हैं?
क्या बच्चों को दाँत निकलने पर बुखार आता है?
दाँत आने के समय बच्चे को बुखार आने का क्या कारण हैं?
क्या बच्चों के दाँत आने के समय होने वाले दर्द के लिए होम्योपैथिक दवा का उपयोग कर सकते हैं?
दाँत आने के समय बच्चों में दस्त की समस्या क्यो होती हैं?
बच्चों को दाँत निकलने के समय दर्द क्यों होता हैं?
क्या दाँत निकलने के दौरान बच्चों को होने वाले दस्त, उल्टी को रोक सकते हैं?
आपके बच्चे के दांत निकलने के कारण होने वाले दर्द को कम करने के लिए घरेलू उपचार
बच्चों के दाँतों की देखभाल करने की टिप्स
बच्चे का जन्म माता पिता के लिए एक खुशियों भरा नये जीवन की शुरुआत होती हैं। इस शुरुआत में माता पिता को अपने बच्चे के लिए हर कदम पर सावधानियाँ और देखभाल के लिए तैयार रहना होता हैं। माँ के लिए मातृत्व का नया एहसास होता हैं। और अपने बच्चे के खास ख्याल और देखभाल के लिए माँ के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारीयाँ होती हैं।
आमतौर पर एक नवजात शिशु के दाँत आने में 5 से 6 महीने लगते हैं। और पहली बार जब बच्चे की दाँत आती हैं, तो इसे टीथिंग के नाम से भी जानते हैं।
जब बच्चे को पहली बार दाँत आती हैं, तो बच्चों को बहुत सारे दर्द और समस्या से गुजरना पड़ता हैं। नवजात शिशु को हो रही परेशानी और दर्द को बच्चे खुद से बता भी नही पाते हैं। इसलिए आपको बच्चे में होने वाली शारीरिक प्रभाव और समस्या को खुद समझना होगा।
सामान्यतः बच्चे के दाँत निकलने के समय या टिथिंग के समय बच्चे में चिड़चिड़ापन, बेचेनी, बुखार और दस्त जैसे लक्षण पाये जाते हैं। बेबी केयर टिप्स के इस लेख में आपको बच्चों के दाँत निकलने के समय या टीथिंग के समय बच्चों को होने वाली समस्या, दर्द और शारीरिक तकलीफ से जुड़ी कई जानकारी मिलेगी।
आइए जानते हैं, बच्चों में दाँत निकलने के दौरान होने वाली शारीरिक प्रभाव के बारे में सम्पुर्ण जानकारी मिलेगी।
बच्चों में शुरुआती दाँत कब आती हैं?
सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते हैं, हर बच्चा अलग होता हैं। इसलिए हर बच्चों में दाँत आने की शुरुआत अलग अलग होती हैं।
बच्चों के दाँत किस महीने में आने शुरु हो जाते हैं?
सामान्यतः बच्चों के दूध के दाँत 6 महीने की आयु से निकलने प्रारंभ हो जाते हैं। वही कुछ बच्चों के दाँत 4 महीने या जन्म से ही हो जाते हैं। कुछ बच्चों के दाँत समय से पहले आ जाते हैं, और कुछ बच्चों को दाँत आने में देरी भी हो सकती हैं।
वास्तव में बच्चे के दाँत का विकास गर्भ में ही शुरु हो जाते हैं। बच्चा जब गर्भ में होता हैं, उस दौरान दाँत मसूड़ों के साथ बनने की प्रक्रिया होती हैं, जो बच्चे के छह महीने के होने पर दाँत बाहर नजर आ जाते हैं।
बच्चे के कौन से दाँत पहले आते हैं?
आमतौर पर बच्चों में सबसे पहले नीचे के मसूड़ों में दाँत दिखाई देते हैं, और यह शुरुआत में दो दाँत नजर आते हैं।
बच्चों के दाँत उगने के क्या क्रम होते हैं।
बच्चों के दाँत उगने के निम्नलिखित क्रम होते हैं।
- 4 से 7 माह : बच्चों के नीचले भाग में दो दाँत नजर आते हैं।
- 8 से 12 माह : उपर के भी भाग में दाँत दिखाई देते हैं।
- 9 से 16 माह : बच्चें मुँह मे बीच के दाँत उभरने या दिखाई देने लगते हैं।
- 13 से 19 माह : इस माह के दौरान बच्चे के दाढ़े, उपर और नीचे में भी दाँत दिखाई देते हैं।
- 16 से 23 माह : इस माह के दौरान कैनाइन दाँत आती हैं। जो कि नुकिला होता हैं।
- 23 से 31 माह : बच्चे के मुँह के नीचले भाग के दाढ़ के दाँत आते हैं।
- 25 से 33 माह : बच्चे के उपरी दाढ़ में दाँत दिखाई देने लगते हैं।
बच्चे के तीन साल में दाँत के पूरे सेट तैयार हो जाते हैं। जिसमें 20 दाँत होते हैं। साथ ही चौथे साल में बच्चे के जबड़े की हड्डियाँ भी बढ़नी शुरु हो जाती हैं। और यह बच्चे के वयस्क या स्थायी दाँत के आने की शुरुआत होती हैं।
जिन बच्चों के देर से दाँत निकलते है।
कुछ बच्चों के दाँत 6 महीने में नहीं निकलते हैं, अगर आपके बच्चें के दाँत नही आये हैं, तो ऐसे में घबराने की जरुरत नहीं हैं, यह कई कारणों के वजह से होता हैं। मगर यह सुनिश्चित कर ले, कि आपने बच्चे के सिर्फ दाँत ही देर से आ रहे हैं, या बच्चे के बाल, त्वचा या हड्डियों से जुड़ी भी कुछ समस्या हैं। ऐसे में आपको तुरंत अपने बाल रोग चिकित्सक से बात करने की आवश्यकता हैं।
अगर आपके बच्चे के सिर्फ दाँत ही देर से आ रहे हैं, और बाल, त्वचा, और हड्डियों से जुड़ी कोई समस्या नही हों, तो फिर डरने की कोई जरुरत नहीं हैं। क्योंकि बच्चे के दाँत देर से आने पर बच्चे के शारीरिक विकास पर कोई असर नहीं होता हैं।
बच्चे को देर से दाँत आने के क्या कारण हैं?
जिन बच्चों के देर से दाँत आते हैं, उनमें निम्न कारण हो सकते हैं।
पोषण की कमी: आपके बच्चे को सही से पोषण ना मिलने के कारण भी बच्चे के दाँत या अन्य शारीरिक विकास में बाधा होती हैं। ऐसे में आपको अपने बच्चे के सम्पूर्ण पोषण का ध्यान रखना चाहिए।
समय से पहले जन्मा शिशु : कुछ बच्चे जो जन्म के समय से पहले ही जन्म लेते हैं, उनमे भी कुछ शारीरिक बदलाव होती हैं, कुछ बच्चों के दाँत भी देर से आने की समस्या हो सकती हैं।
अनुवांशिक : बच्चे के दाँत देर से आना एक अनुवांशिक भी हो सकता हैं। माता या पिता कोई एक को भी उनके जन्म के समय ऐसा हुआ हो।
जरूरी नही हैं कि यह अनुवांशिक हो, यह बच्चे के पोषण पर भी असर डालता हैं। अगर आप बच्चे के सही पोषण पर ध्यान देती हैं, तब भी आपका बच्चे के दाँत देर से आ रहे हैं, तो ऐसे में बच्चे को विटामिन-डी की कमी या हाइपोथायराडिज्म के लक्षण हो सकते हैं। आपको डॉक्टर से इस बारे में बात करनी चाहिए।
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शिशुओं में दाँत निकलने कौन से लक्षण और
समस्या पाये जाते हैं?
शिशुओं के दाँत जब आने वाले होते हैं, तो बच्चों में कुछ ऐसे लक्षण पाये जाते हैं, जिनके द्वारा आप बच्चों के दाँत आने के बारे में पता लगा सकते हैं। हालांकि कुछ बच्चों में दाँत आराम से निकल जाते हैं, और उन्हे कोई भी दर्द नहीं होता हैं।
बच्चों के दाँत निकलते समय मसूड़े सूज जाते हैं, और दर्द भी रहता हैं। और यह दर्द बच्चे को दाँत आने के 3 से 6 दिन पहले तक रहता हैं। दाँत आने के बाद दर्द नहीं होता।
बच्चों में दाँत आने के दौरान निम्नलिखित संकेत मिलते हैं, जिससे आप अपने बच्चे के दाँत आने का अंदाजा लगा सकते हैं।
- मसूड़ों का सूजना: जैसे कि उपर बताया गया, दाँत आने के पहले मसूड़े सूज जाते हैं, और यह लाल रंग का हो जाता हैं। आप चाहे तो बच्चे के मसूड़ो को हल्का मसाज कर सकतीं हैं।
- लार टपकना : बच्चे के दाँत आने के समय बच्चा कुछ ज्यादा ही लार टपकाता हैं, यह बच्चे के दाँत आने के संकेत भी होता हैं, कि बच्चे को दाँत आना शुरु हो गया हैं। और यह लार तब तक बच्चा टपकाता हैं, जब तक कि दाँत निकल ना जाये।
- कानों का खिचना: मसूड़ो की दर्द के वजह से बच्चा कान भी खिंचता हैं, क्योंकि उनके कान में भी दर्द होता हैं। कान में दर्द होने का कारण है, मानव शरीर का मसूड़ों और कान का एक ही तंत्रिका तंत्र से जुड़ी होती हैं।
- काटना और चाबाने में अधिकता : बच्चे के मसूड़ों का दर्द ज्यादा बढ़ने के कारण बच्चा खुद ही खाने या किसी भी वस्तु को ज्यादा काटने की कोशिश करता हैं, और चाबाना शुरु करता हैं। जिससे बच्चे को मसूड़ों में मसाज होता हैं और बच्चे को कुछ राहत मिलती हैं। बच्चे को इस दौरान बहुत ज्यादा दर्द होता हैं।
- कम खाना : बच्चो के मसूड़ों में दर्द की वजह से बच्चा कम खाता या पीता हैं।
- गाल खीचना: बच्चा कभी कभी गाल खींच कर अपने दर्द को कम करने की कोशिश करता हैं।
- मसूड़ों पर दाँत दिखना: बच्चे के दाँत आ रहे होते हैं, तो कुछ समय बाद नीचे के मसूड़ों में दाँत भी दिखने शुरु हो जाते हैं।
- चिड़चिड़ापन बढ़ना : बच्चों में मसूड़ों और कान में दर्द बढ़ जाता है, कि बच्चा चिड़चिड़ा महसूस करने लगता हैं।
- सोने में परेशानी: बच्चे को दर्द की वजह से नींद नही आती या आती हैं, तो रात में दर्द के वजह से जाग भी जाता हैं।
- ड्रिबिल रैशेज : बच्चे को दर्द के कारण बहुत परेशानी होती हैं, जिसे कम करने के लिए उपर बताये गये सभी उपायों को बच्चे के द्वारा करने के बाद बच्चे को रैशेज जैसी समस्या भी हो जाती हैं। ज्यादातर रैशेज गाल पर और होठ के आस पास होती हैं।
इन लक्षणों के अलावा बच्चे का ज्यादा रोना, स्वास्थ्य संबंधी समस्या जैसे बुखार, दस्त आदि होने पर आपको बाल रोग चिकित्सक से सम्पर्क करना एक अच्छा विकल्प हैं।
बच्चों को दाँत निकलने के दौरान होने वाली
तकलीफें कौन सी हैं?
बच्चों की जब पहली दाँत आती हैं, तो यह बच्चे को बहुत ही तकलीफ और दर्द देने वाला होता हैं। और बच्चा इतना छोटा होता हैं, कि बच्चे खुद से कुछ बता भी नहीं पाते हैं।
सामान्यतः बच्चों को होने वाली तकलीफ बच्चों को उलटी होना, दस्त होना, और बुखार जैसी समस्या आती हैं।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना हैं बच्चों को दाँत आने दौरान सिर्फ मसूड़ों में सूजन और दर्द होता हैं। शरीर के अन्य भाग पर दाँत आने का कोई प्रभाव नही पड़ता।
अगर आपने बच्चे को दस्त और उलटी होती हो, तो आपको डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
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ना कराने के क्या क्या नुकसान हैं?
क्या बच्चों को दाँत निकलने पर बुखार आता है?
जब बच्चों को दाँत आ रही होती हैं, तो बच्चे के शरीर का तापमान थोड़ा बढ़ जाता हैं। लेकिन इसे बुखार नही कहा जायेगा।
लेकिन अगर बच्चे को दस्त हो रहा हैं, उल्टी हो रही हैं, और भूख नही लग रही हैं, साथ ही बच्चे के मलाशय का तापमान (Rectal temperature) 104 डिग्री फ़ॉरेनहाईट हैं, तो यह एक बीमारी के संकेत हैं, ऐसे में आपको अपने बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
दाँत आने के समय बच्चे को बुखार आने का क्या कारण हैं?
बच्चे को दाँत निकलने के दौरान बुखार आने का कारण बच्चे के शारीरिक बदलाव होता हैं। बच्चे के दाँत आना बच्चे के लिए एक शारीरिक विकास होता हैं।
जब बच्चे के दाँत आते हैं, तो बच्चे के मसूड़ों में सूजन हो जाता हैं, और जब दाँत हल्का सा दिखायी देने लगे, तो बच्चे के मसूड़े खुले होते हैं, जिससे बैक्टीरिया के संक्रमण होना भी एक कारण होता हैं। जब बच्चे के मसूड़ों द्वारा बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश करते है, तो बच्चे का शरीर बैक्टीरिया के विरूध शरीर लड़ रहा होता हैं। जिससे बच्चे के शरीर का तापमान हल्का बढ़ जाता हैं।
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दाँत आने के समय आयी बुखार कब तक रहती है?
दाँत आने पर हुई बच्चों में बुखार एक से दो दिन रहती हैं। मगर यह क्रम हर दाँत निकलने के दौरान होगी। जैसे कि जब भी बच्चे के दूसरे दाँत निकलने वाले होंगे, तो बच्चे के मसूड़े सूज जायेंगे, दस्त, और बुखार जैसी समस्या आयेगी। मगर ज्यादा दर्द सिर्फ पहली दाँत आने के समय होता हैं। अगले दाँत आने में दर्द और अन्य प्रभाव व लक्षण कम होती जायेगी।
क्या बच्चों के दाँत आने के समय होने वाले दर्द के लिए
होम्योपैथिक दवा का उपयोग कर सकते हैं?
बच्चों के जब शुरुआती दाँत आते है, तो बच्चों को बहुत ज्यादा दर्द होता हैं। ऐसे में बच्चों को होम्योपैथिक दवा से बहुत जल्द राहत दी जा सकती हैं। क्योंकि होम्योपैथिक दवा मीठी होती हैं, और बच्चे इसे आराम से पी या खा सकते हैं।
लेकिन बच्चों को कोई भी तरह की दवा देने से पहले बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह के बिना नही देना चाहिए।
आप डॉक्टर से बात करे, क्योंकि कुछ बच्चों को किसी दवा की आवश्यकता नही होती हैं, क्योंकि वे शुरुआती दाँत आने के दर्द को सहने के बाद बच्चों को बांकि के आने वाले 20 दाँत में परेशानी नही होती।
दाँत आने के समय बच्चों में दस्त की समस्या क्यो होती हैं?
इसका कोई सटीक प्रमाण नही हैं, कि बच्चे के दाँत आने के समय बच्चे को दस्त की समस्या होती हैं, हालांकि, यह मिथक जरूर हैं, कि बच्चों में दाँत निकलते समय दस्त होता हैं।
दाँत आने के समय आगर आपके बच्चे को दस्त हैं, या हुआ था, या हो जाये, इसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं, जैसे कि बच्चे के दाँत निकलते समय बच्चों के मसूड़ों में काफी दर्द होता हैं, और इस दौरान बच्चे के मसूड़ों की त्वचा में संवेदनशीलता होती हैं। जिसके कारण बच्चे अकसर अपने दर्द को कम करने के लिए बच्चे के आस पास आयी कोई भी वस्तु को मुँह में डालने की कोशिश करता हैं।
जिस वस्तु को बच्चे मुँह में लेते हैं, ज्यादातर उनमें जीवाणु, विषाणु पाये जाते हैं। जो बच्चों द्वारा मुँह में लेने पर बच्चों को संक्रमण हो जाता हैं। और यह बच्चों को उलटी और दस्त के मुख्यतः कारण होते हैं।
अगर आपके बच्चे को दस्त हो जाये, तो आपको तुरंत अपने बच्चे को बाल रोग विशेषज्ञ के पास ले जाना एक अच्छा विकल्प होता हैं।
बच्चों को दाँत निकलने के समय दर्द क्यों होता हैं?
बच्चों को दाँत निकलने के समय दर्द का सामना करना पड़ता हैं, क्योंकि बच्चों के मसूड़ों के सतह के सतह के नीचे दाँत की कलिया बननी शुरु हो जाती हैं। साथ ही यह संवेदनशील मसूड़ों की सतक को हटा कर दाँत बाहर आती हैं, जिसके कारण मसूड़े सूज कर लाल हो जाते हैं। जिससे बच्चों को ज्यादा दर्द का सामना करना पड़ता हैं।
क्या दाँत निकलने के दौरान बच्चों को होने वाले दस्त, उल्टी को
रोक सकते हैं?
बच्चों को जब दस्त और उलटी होती हैं, तो बच्चों के शरीर में पानी की कमी होने लगती हैं। जो बच्चों को बेहद कमजोर बना देता हैं।
दस्त होने का मुख्यतः कारण गंदगी, और किसी कारण बच्चे ने कुछ जीवाणु युक्त और विषाणु युक्त वस्तु खा लिया हो, जिससे बच्चे को संक्रमण हो जाता हैं।
ऐसे में आपको अपने बच्चे को किसी भी गंदी जगह पर खेलने ना दे। बच्चे के द्वारा मुँह में लिये जाने वाले वस्तु पर ध्यान दे।
अगर आपके बच्चे को दस्त हुआ हो तो डॉक्टर से तुरंत सम्पर्क करे।
आपके बच्चे के दांत निकलने के कारण होने
वाले दर्द को कम करने के लिए घरेलू उपचार :
- हर माता पिता अपने बच्चे को तकलीफ में नही देख सकता। इसलिए आपके लिए कुछ घरेलु उपचार या टिप्स जिससे आप अपने बच्चे के दर्द में कुछ राहत दे सकती हैं।
- आप अपने बच्चे को साफ-सुथरा, नर्म और गीला कपड़ा चबाने को दे।
- आपको अपने बच्चे को दुलार और ज्यादा से ज्यादा प्यार देना चाहिए। माता पिता के प्यार दुलार के कारण बच्चे की बहुत तकलीफ दूर हो जाती हैं।
- बच्चे के साथ खेले ताकि बच्चा खेल की वजह से दर्द को भूल जाये।
- आप अपने बच्चे के सुजे हुए मसूड़े को तर्जनी उँगली को साफ कर सूजे हुए मसूड़े पर बहुत ही हल्के से मालिश करे।
- बच्चे के मसूड़े को मालिश करने के लिए एक सामान्य ठंड (जो जमा ना हो) पानी को एक कपड़े का उपयोग करे।
- आप हल्के ठंडे टीथिंग का भी उपयोग बच्चे के मसूड़े को मालिश करने के लिए कर सकते हैं।
- अगर आपके बच्चे ने ठोस पदार्थ का सेवन शुरु कर दिया हैं, तो आप बच्चे को चबाने के लिए कुछ ठंडा दे, जैसे कि खीरा आदि।
- इस दौरान बच्चे को ज्यादा लार गिरते हैं। आपको अपने बच्चे के लिए एक साफ कपड़े या नैपकिन का इस्तेमाल कर लार को हमेशा साफ करे।
- बच्चे को कुछ भी मिर्च मसाला युक्त भोजन ना दे, जिससे जलन हो।
- आप बच्चे को खाने के लिए ताजे मौसमी फल और सब्जियाँ दे।
- आपको सुनिश्चित करना चाहिए, कि आपके बच्चे को पर्याप्त आराम मिल रहा हो।
- आपके बच्चे के प्रतिक्षा प्रणाली को स्वस्थ्य रखे, जिसके लिए आपको अपने बाल रोग विशेषज्ञ से जाँच कराने की आवश्यकता होगी।
- आपको स्तनपान भी जारी रखना चाहिए।
- आप अपने बच्चे को चुसने के लिए प्राकृतिक ठोस लकड़ी के खिलौना वाली चुसनी चुसने को दे सकते हैं।
- आप बच्चे को सेब का ठंडा पेस्ट बना कर दे। यह बच्चे के दाँत आने में सहायक होता हैं।
बच्चों के दाँतों की देखभाल करने की टिप्स :
बच्चों की दातों की देखभाल करने के लिए बच्चों की दाँत की सफाई के लिए दिनचर्या बनाये, जिससे बच्चे के लिए यह आदत दाँत आने से पूर्व ही बच्चे के लिए अपनाये।
आप निम्नलिखित टिप्स के द्वारा अपने बच्चे की देखभाल कर सकती हैं।
- बच्चे को हर बार दूध पिलाने के बाद जरूर से बच्चों के मसूड़ों की सफाई करे। खासकर रात को सोने से पूर्व।
- आप एक नर्म और साफ कपड़े का उपयोग करे। जिससे बच्चे के नाजूक से मसूड़ों को कोई नुकसान नही पहुँचे।
- बच्चों को कैल्शियम, विटामिन-डी, मिनरल्स, फ्लोराईड, फास्फोरस से भरपूर आहार दे।
- बच्चों को मीठे भोजन कम दे, इससे बच्चे को कैविटी हो सकती हैं।
- बच्चे के बर्तन अलग रखे, ध्यान रखे बच्चे के बर्तन कोई और उपयोग ना करे। इससे बच्चे को इंफेक्शन का खतरा हो सकता हैं।
- बच्चे के एक साल हो जाने पर जरूर दंत चिकित्सक के पास बच्चे की मुँह और दाँत की जाँच कराये।
- जब बच्चा किसी तरह की दवा लेता हो, तो जरूर ही दवा लेने के बाद कुल्ला कराने की आदत बनाये। जिससे दाँतों में कैविटी का खतरा कम रहता हैं।
- बच्चे का दाँत आ रहा हो, तो बच्चे के 18 महीने के बाद बच्चे के लिए एक छोटे हेड और हैंडल वाली नर्म और कोमल ब्रश से बच्चे को ब्रश करने की आदत लगाये। सुनिश्चित करे यह ब्रश बच्चे के लिए सुरक्षित हो और बच्चे के मुँह में आराम से जा सके।
- फ्लोराईड युक्त टूथपेस्ट का उपयोग बच्चे के तीन साल की आयु होने के बाद ही शुरुआत करे।
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